मूंगा
मूंगा
क्या है?
मूंगा मंगल का रत्न है अर्थात इस का स्वामी मंगल है। यह मोती की तरह खान से नहीं निकलता, बल्कि समुद्र में पाया जाता है। मूंगे का भी विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नाम है। संस्कृत में इसे प्रवाल, लतामणि, भोम रत्न आदि कहते हैं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार मूंगा एक तरह का वनस्पतिक पदार्थ है। देखने में इसका रूप किसी लता की शाखा जैसे लगता है। इसीलिए इसका नाम लता मणि रखा गया। मूंगे का इतिहास भी प्राचीन है। बृहदसंहिता के अनुसार मूंगे का जन्म अश्रु राजबली की अंतरिम से हुआ। भारत में प्राचीन काल से ही मूंगे का प्रचलन रहा है।
मूंगा का धारक कौन ?
01
अगर जन्म कुंडली में मंगल राहु या शनि के साथ कहीं भी स्थित हो तो मूंगा पहनना अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है।
02
यदि मंगल प्रथम भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना लाभकारी होगा।
03
अगर मंगल तीसरे स्थान पर हो तो भाई बहनों में मतभेद होता है। इसे दूर करने के लिए मूंगा पहनना चाहिए।
04
यदि कुंडली में मंगल चतुर्थ भाव में हो तो जीवन साथी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है। अतः ऐसे जातक मूंगा अवश्य पहने।
05
. कुंडली में सप्तम या द्वादश भाव का मंगल शुभ नहीं होता। इससे जीवन साथी को कष्ट होता है। अतः ऐसे व्यक्ति को भी मूंगा पहनना चाहिए।
06
यदि जन्म कुंडली में धनेश मंगल नवम भाव में, चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल एकादश भाव में या पंचम भाव का स्वामी मंगल द्वादश भाव में स्थित हो तो मूंगा पहनना अत्यंत लाभकारी होता है।
07
अगर कुंडली में मंगल कहीं भी स्थित हो और उसकी दृष्टि सप्तम, दशम या एकादश भाव पर हो तो मूंगा धारण करना लाभकारी होगा।
08
यदि मंगल कुंडली में छठे आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना लाभदायक होगा ।
09
अगर मंगल चंद्रमा के साथ हो तो इस रतन को पहनने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।