नीलम
नीलम
क्या है?
नीलम भी एक बहुमूल्य व शीघ्र प्रभाव डालने वाला रतन है इसका स्वामी शनि है । माणिक्य की तरह नीलम भी कुंदन समूह का रतन है । इस समूह के लाल रतन को माणिक्य तथा सभी अन्य रत्नों को नीलम कहा जाता है।, जैसे- श्वेत नीलम, हरा नीलम, बैंगनी नीलम आदि । लेकिन खासतौर से आसमानी, चमकीले, गहरे नीले, मखमली नीले आदि रंग के रत्नों को नीलम की संज्ञा दी जाती है। विभिन्न भाषाओं में इसका भिन्न-भिन्न नाम है । संस्कृत में इसे नीलमणि, इंद्रनील मणि, तृषाग्राही हिंदी में नीलम और अंग्रेजी में सफायर नाम से जाना जाता है। नीलम का इतिहास काफी पुराना है । धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दत्त राजबली के नेत्रों से नीलम का जन्म हुआ। भारतीय ग्रंथों में नीलम के दो प्रकार बताए गए हैं- पहला जलनील और दूसरा इंद्रनील। लघु नीलम के अंदर सफेद होने पर उसे जल नील कहते हैं। जबकि श्याम आभा युक्त नीलिमा प्रस्फुटित करने वाला भारी नीलम इंद्रनील कहलाता है। वास्तव में यह नीले और लाल रंग का मिश्रण यानी बैंगनी रंग का होता है। सर्वश्रेष्ठ नीलम भारत के कश्मीर राज्य में मिलते हैं। नीलम की खान श्रीलंका में भी है जोकि उत्तम रत्नों में ही आती है।
नीलम का धारक कौन ?
01
मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक लग्न वालों को नीलम धारण करना फायदेमंद रहता है। यह भाग्य उदय करता है।
02
यदि जन्म कुंडली में शनि चौथे, पांचवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में हो, तो नीलम अवश्य धारण करना चाहिए।
03
अगर शनि छठे भाव का या आठवीं के स्वामी के साथ बैठा हो, तो नीलम अवश्य पहनना चाहिए।
04
शनि मकर तथा कुंभ राशि का स्वामी है । यदि एक राशि श्रेष्ठ भाव में और दूसरी अशुभ भाव में हो
05
यदि शनि की साढ़ेसाती चल रही हो, तो नीलम धारण करना श्रेष्ठ होता है।
06
. अगर किसी भी ग्रह की महादशा में शनि की अंतर्दशा चल रही हो तो नीलम अवश्य ही पहनना चाहिए।
07
यदि शनि सूर्य के साथ हो, सूर्य की राशि में हो या सूर्य से दृष्ट हो, तब भी नीलम पहनना चाहिए।
08
जन्म कुंडली में शनि मेष राशि पर स्थित हो, तो नीलम पहनना बहुत जरूरी होता है।
09
अगर शनि कुंडली में वक्री, हस्तगत या दुर्बल हो और शुभ भावों का प्रतिनिधित्व कर रहा हो, नीलम धारण करना श्रेष्ठ कर माना गया है।