पुखराज
पुखराज
क्या है?
पुखराज एक कीमती रतन है। इसे गुरु रतन भी कहा जाता है यानि इस का स्वामी बृहस्पति है। पुखराज हो हीरा और माणिक्य के बाद सबसे कठोर रतन है, लेकिन साथ ही साथ यह मुलायम भी होता है। इसीलिए इसे तरसते समय अत्यंत सावधानी बरती जाती है। विभिन्न भाषाओं में इसका भिन्न-भिन्न नाम है इसे संस्कृत में पुष्प राग और हिंदी में पुखराज कहा जाता है। पुखराज मुख्यतः 5 रंगों का होता है-1. हल्दी के रंग जैसा 2. केसर के समान केसरिया 3. नींबू के छिलके के समान 4. सोने के रंग जैसा और 5. सफेद लेकिन पीली झाई के लिए। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार- शुद्ध व श्रेष्ठ पुखराज पीली कांति वाला, हाथ में लेने पर वजनी लगने वाला, धब्बों से रहित, पारदर्शी, चिकना, छिद्ररहित, मुलायम, चंपा के फूल के रंग जैसा चमकदार होता है। यह क्षय रोग नाशक तथा यश कीर्ति, सुख वैभव आयु में वृद्धि करने वाला रतन है। इसका इतिहास भी अति प्राचीन है। आचार्य वराह मिहिर के अनुसार जब दैतिय राजबली के चर्म हिमाचल प्रदेश तो वे पुखराज के रूप में परिवर्तित हो गए।
पुखराज का धारक कौन ?
01
. धनु और मीन लग्न वाले जातकों को पुखराज अवश्य पहनना चाहिए।
02
यदि जन्म कुंडली में बृहस्पति पांचवें, छठे, आठवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो पुखराज पहनना चाहिए।
03
यदि बृहस्पति मेष, वृष, सिंह, वृश्चिक, तुला, कुंभ या मकर राशि में स्थित हो तो पुखराज धारण करना अति लाभकारी होता है।
04
अगर बृहस्पति मकर राशि में मौजूद हो तो पुखराज तुरंत पहनना चाहिए।
05
यदि बृहस्पति धनेश होकर नवम में, चतुर्थ भाव का स्वामी होकर एकादश भाव में, सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में, भाग्य स्थान का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में, या राजस्थान का स्वामी होकर पंचम भाव में स्थित हो तो पुखराज पहनने से अत्यंत अच्छा लाभ प्राप्त होता है।
06
यदि बृहस्पति उत्तम भाव का स्वामी होकर अपने भाव से छठे या आठवें स्थान पर स्थित हो तो पुखराज जरूर पहनना चाहिए।
07
यदि किसी ग्रह की महादशा में बृहस्पति का अंतर चल रहा हो तो पुखराज पहनना श्रेष्ठकर होता है।
08
यदि किसी कन्या का विवाह किसी कारणवश ना हो रहा हो तो पुखराज धारण करने से शीघ्र ही मनोकामना पूरी होती है।
09
पुखराज पहनने से गलत विचारों एवं कार्यो में कमी आती है । शुभ विचार उत्पन्न होते हैं तथा चित शांत रहता है।